राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन 2023 (NMSA)

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA):- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन का फुल फॉर्म ”National Mission on Sustainable Agriculture” होता है, इसके तहत जलवायु परिवर्तन को स्थिर बनाने के लिए कई प्रयास किये जा रहे है | कृषि की उत्पादकता के लिए जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन मृदा, जल की गुणवत्ता और उपलब्धता पर भी निर्भर करता है | प्राकृतिक दुर्लभ संसाधन के इस्तेमाल से कृषि संरक्षण को बढ़ावा देकर संधारणीय बनाया जा सकता है | NMSA का पूरा नाम सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन है। यह योजना कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लॉन्च की गई है। इस योजना की शुरुआत 2014-15 (बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान) की गई। क्रियान्वयन हेतु रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए सचिव (कृषि) की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NAC) गठित राष्ट्रीय स्तर पर एक स्टैंडिंग टेक्निकल कमेटी (STC) द्वारा सहयोग और तकनीकी फीडबैक है भारत सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत उपयुक्त अनुकूल और शमन उपायों का प्रयोग कर जलवायु अनुकूल उत्पादन प्रणाली में बदलने के लिए बाहरवीं पंचवर्षीय योजना चलायी जा रही है, जो राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन है |

Benefits Of National Mission on Sustainable Agriculture

एनएमएसए जल प्रयोग दक्षता, पोषक तत्व प्रबंधन और आजीविका विविधीकरण के मुख्य आयामों की व्यवस्था करेगा जिसके लिए वह पर्यावरण हितैषी प्रौदयोगिकियों के गतिशील बदलाव, ऊर्जा कोशल उपकरणों के अंगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, एकीकृत खेती इत्यादि के सतत विकास का रास्ता अपनाएगा। इसके अलावा, एनएमएसए का उद्देश्य मृदा और स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्द्धित जल प्रयोग कोशल, रसायनों का समुचित प्रयोग, फसल विविधीकरण, फसल-पशुधन कृषि प्रणालियों का प्रगामी अंगीकरण और एकीकृत दृष्टिकोणों जैसे फसल-रेशम कीट, कृषि-वानिकी, मत्स्यपालन इत्यादि स्थिति विशिष्ट उन्नत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन का उद्देश्य (National Mission on Sustainable Agriculture Purpose)

  • कृषि उत्पादन को विशिष्ट संघटित/संयुक्त कर्षि प्रणाली को बढ़ावा देकर उत्पादन को अधिक सतत, लाभकारी और जलवायु प्रत्यास्थ बनाना है |
  • नमी संरक्षण का उपयोग कर समुचित मृदा से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना है |
  • मृदा उवर्रता को मानचित्र, बृहत एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों के मृदा परीक्षण आधारित अनुप्रयोक्ता समुचित उवर्रको के प्रयोग इत्यादि के आधार पर व्यापक मृदा स्वास्थ प्रबंधन विधियों को अपनाना |
  • फसल की अधिक प्राप्ति के लिए कुशल जल प्रबंधन का इस्तेमाल कर जल संसाधनों का श्रेष्ठ प्रयोग करना |
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और अल्पीकरण के अन्य क्षेत्र में चालू मिशनों अर्थात राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं प्राद्यौगिकी मिशन, राष्ट्रीय खाद सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि जलवायु प्रत्यास्थता (NICRA) आदि के सहयोगो से किसानो और पणधारियों की क्षमताओं को बढ़ाना |
  • वर्षा सिंचित प्राद्यौगिकी को मुख्य धारा में लाने के लिए अनेक प्रकार की योजनाए जैसे :- एकीकृत पनधारा कार्यक्रम (IWMP), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम (मनरेगा), आरकेवीवाई (RKVY) की तरह ही अन्य प्रकार की स्कीम व् मिशनों से संसाधनों को लेकर और एनआईसीआरए आदि योजनाए वर्षा सिंचित के माध्यम से कृषि की उपज  को सुधारने के लिए ब्लाकों में प्रयोगिकी मॉडल,एनएपीसीसी के संरक्ष्रण व् राष्ट्र स्थिर कृषि मिशन के मुख्य प्रदेयो को सम्पूर्ण करने के लिए प्रभावशाली और आंतरिक विभागीय/मंत्रालय समन्वय की स्थापना की गयी है |

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योजना की विशेषताएं

  • कृषि से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक मिशन है
  • इसके तहत फसल और पशुपालन के क्षेत्र में समुचित अनुकूलन और न्यूनीकरण के माध्यम से भारतीय कृषि को जलवायु अनुकूल बनाने की दिशा में कार्य
  • NMSA के तहत ये शामिल हैं- जल उपयोग दक्षता में वृद्धि, रसायनों का विवेकपूर्ण उपयोग, आजीविका विविधीकरण, आजीविका विविधीकरण, स्थान विशिष्ट उन्नत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा

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NMSA के घटक

National Mission on Sustainable Agriculture
  • Rainfed Area Development (RAD)
  • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
  • राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM)
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM)
  • Climate Change & Sustainable Agriculture: Monitoring, Modeling & Networking (CCSAMMN)

योजना के लाभ

  • खाद्य और आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक
  • स्मार्ट कृषि प्रणालियों को बढ़ावा
  • कृषि क्षेत्र में जलवायु अनुकूलन
  • संसाधनों का उचित प्रयोग व संरक्षण

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राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन में कार्य प्रकृति

  • जलवायु परिस्थितयो के अनुकूल फसल का चुनाव करे |
  • पशु पालन, मछलीपालन, बागवानी, दुग्ध उत्पादन, कृषि वानिकी आदि को अपनाकर फसल/फसल – प्रणाली में विविधता उत्पन्न करे |
  • जल भण्डारणो जैसे :- चेक डैम,तालाबों,खेत तालाब, उथले ट्यूबवेलों,कुओ आदि को सिंचाई का साधन बनाये |
  • सिंचाई करने की प्रभावी तकनीक भू-समतलीकरण, मेंड़बंधी, कंटूर बांडिंग, खाई निर्माण,, मल्चिंग, रिज एवं कुंड पद्धति जैसी कम जल प्रयोग करने वाली नमी संरक्षण तकनीकों का इस्तेमाल करे |

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राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के अंतर्गत प्राप्त सहायता

योजनासहायता का प्रकारमात्रा
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)चावल, गेहूं, मोटे अनाज/तिलहन/रेशम/डाल आधारित दो फसलों वाली कृषि पद्धति की सहायता प्रदान करनाआदान लागत का 50%, जो प्रति हेक्टेयर 10,000/- तक सीमित होगी | अधिकतम देय सहायता, 2 हेक्टेयर प्रति लाभार्थी तक सीमित होगी।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)बागवानी आधारित कृषि पद्धति (पौधारोपण,फसल/फसल पद्धति)आदान लागत का 50%, जो प्रति हे. 25,000/- तक सीमित होगा। अधिकतम अनुदेय सहायता, 2 हे. प्रति लाभार्थी तक सीमित होगी।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)वृक्ष/सिल्विपश्चरल/इन सीटू/एक्स सीटू गैर इमारती वन्य उत्पादों का इन सीटू संरक्षण (एनटीएफपी) (पौध रोपण, घास/फसल/फसल पद्धति)आदान लागत का 50%, जो रू. 15,000/- प्रति हे. तक सीमित होगा। अधिकतम अनुदेय सहायता, 2 हे. प्रति लाभार्थी तक सीमित होगी।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)संकरित गायें, मिश्रित खेती,चारा, मिश्रित खेती, दूध का उत्पादन,चारा पशु गाय/भैंस, चारा गाय/भैंस,छोटे पशुआदान लागत का 50% जो प्रति हेक्टयर  अधिकतम 40,000/  रूपए है। इसमें पशुओं की देख-रेख के लिए पूरे वर्ष का चारा शामिल है। (इसमें 2 दुधारू पशु, के लिए एक हक्टेयर फसल प्राणाली शामिल है) लाभार्थी को 2 हेक्टेयर तक की सीमित सहायता प्रदान की जाएगी |
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)छोटे पशु, मिश्रित कृषि,चारा,  मुर्गी पालन/बतख पालन, मिश्रित खेती,मुर्गी पालन/बतख पालन, मत्स्य पालन, मिश्रित खेतीआदान लागत का कुल 50% जो प्रति हेक्टयेर अधिकतम 25,000 रूपए होगी । इस 50% आदान लागत में पशुओं की लागत एवं एक वर्ष का चारा भी शामिल है। (पशुओं में 10 पशु/50 पक्षी, 1 हे. फसल प्रणाली) यह सहायता अधिकतम 2 हे. प्रति लाभार्थी तक सीमित है।  
 मत्स्य आधारित कृषि पद्धतिफसल/सब्जी प्रणाली जिसमे 50% की लागत मछली पालन के लिए प्रति हेक्टयेर के हिसाब से 25.000 रूपए होगी | अधिकतम प्रति दो हेक्टेयर क्षेत्र वालो को ही यह सहायता प्राप्त होगी |
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)वर्मी कंपोस्ट इकाई/जैविक आदान उत्पादन इकाई/हरी खादलागत का 50%, जो अधिकतम रू. 125/- प्रति घन फुट तक सीमित होगा। स्थायी संरचना के लिए रू. 50.000/- प्रति इकाई और एचडीपी वर्मी बेड के इए रू. 8000/- प्रति इकाई/ हरी खाद के लिए लागत का 50%, जो अधिकतम रू. 2,000/- प्रति हे. तक होगा और प्रति लाभार्थी 2 हे. सीमित होगा।
साइलो पिट आकृति वाले  चारा कटर को तौलने के लिए तराजू की सहायता से  साइलेज को तैयार करना 100% कारगार है,यह  अधिकतम 1.25 लाख रूपए प्रति कृषि परिवार के लिए सिमित होगी |प्रति वर्ष हरा चारा (Green Fodder) उपलब्धता के लिए साइलेज को तैयार करना |ईट व् सीमेंट मासाले के लिए प्रति 2100-2500 घन फुट के साईलो पिट (भूमि के नीचे और भूमि की उपरी सतह पर)  को तैयार करना एवं चारा कटर और तराजू का भी प्रावधान शामिल है |
भण्डारण/ प्रौद्योगिकी की इकाई हेतु पूँजी लागत का 50% जो अधिकतम रू. 4,000/- प्रति वर्ग मीटर होगा | इसमें प्रति यूनिट को अधिकतम रू. 2 लाख की सहायता प्रदान की जाएगी |कटाई के दोरान भण्डारण/NPFP का मूल्य संवर्द्धनआर्थिक लाभ की मात्रा को बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों के मूल्यों में उन्नति के लिए छोटे गाँव स्तर पर चीजो के प्रौद्योगिकी/भण्डारण/पैकिंग यूनिट का निर्माण करना |

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राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के कार्यात्मक क्षेत्र

मिशन के कार्यात्मक क्षेत्र हैं – अनुसंधान और विकास, प्रौद्योगिकियां, उत्पाद और व्यवहार, बुनियादी ढांचे और क्षमता निर्माण। इस मिशन के कार्यात्मक क्षेत्रों के आधार पर यह 10 आयामों के इर्द-गिर्द घूमता है जिसमें उपयुक्त कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए बीज और जल छिडकाव, कीट, पोषक तत्व, कृषि पद्धतियां, ऋण, बीमा, बाजार, सूचना और आजीविका विविधीकरण शामिल हैं। ड्राईलैंड एग्रीकल्चर; जोखिम प्रबंधन; जानकारी हासिल करना; और जैव-प्रौद्योगिकियों का उपयोग मिशन के मुख्य कार्यक्षेत्र हैं।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन की कमियां

भारत का राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन संरचनात्मक रूप से बहुत अच्छा है और यह कृषि के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान कर सकता है। लेकिन मिशन के प्रावधान और रणनीति आधुनिक मानक पर तैयार नहीं किये गए हैं। इस मिशन की कुछ कमियों पर नीचे चर्चा की गयी है:

1. प्रस्तावित प्रावधान और रणनीतियाँ अत्यधिक व्यापक हैं जो केवल बड़े किसानों को लक्षित कर रही हैं और शेष कमजोर हैं।

2. सतत कृषि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, जीवों और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों के अध्ययन की समझ पर आधारित है। लेकिन मिशन की प्रस्तावित रणनीतियों ने पानी को महत्व दिया और बड़े पैमाने पर रासायनिक उर्वरकों के उपयोग की अनदेखी की गयी है। जैविक खेती की तुलना में रासायनिक उर्वरक के उपयोग के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

3. यह मिशन जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि के सामने आने वाली चुनौतियां का कोई प्रावधान नहीं है।

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