कुंदरू की खेती कैसे करे | Ivy Gourd Farming in Hindi | कुंदरू का बीज

कुंदरू की खेती (Ivy Gourd Farming) से सम्बंधित जानकारी

कुंदरू की खेती लतादार बहुवर्षीय सब्जी के रूप में की जाती है | इसकी बेल 3 से 5 मीटर लम्बी होती है, जिसे फैलने के लिए सहारे की जरूरत होती है |

kundaru ki unnat kheti

इसका पौधा 4 से 5 पांच वर्ष तक पैदावार दे देता है | किन्तु जिन स्थानों पर अधिक ठण्ड होती है, वहां कुंदरू की सिर्फ 7 से 8 माह तक फसल प्राप्त हो पाती है | इसमें फ्लेवोनोइड्स, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी बैक्टीरियल, कैल्सियम, आयरन, फाइबर, विटामिन-ए और सी की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है | जिस वजह से कुंदरू का सेवन करना लाभकारी होता है |

भारत में कुंदरू की खेती पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक राज्य में की जाती है | देश के कुछ भागो में किसान भाई कुंदरू की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कर व्यापारिक तौर पर अधिक उत्पादन प्राप्त कर ज्यादा लाभ भी कमा रहे है, यदि आप भी कुंदरू की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको कुंदरू की खेती कैसे करे (Ivy Gourd Farming in Hindi) तथा कुंदरू का बीज आदि के बारे में जानकारी दी जा रही है |

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कुंदरू की खेती कैसे करे (Ivy Gourd Farming in Hindi)

कुंदरू की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार की भूमि की आवश्यकता नहीं होती है | किन्तु कार्बनिक पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मिट्टी में उत्पादन अच्छा मिल जाता है| भारी मिट्टी और जल भराव वाली भूमि में कुंदरू की खेती बिल्कुल न करे | क्योकि पौधे की लताएं जल भराव को सहन नहीं कर पाती है | इसकी खेती में भूमि लगभग 7 P.H. मान वाली होनी चाहिए |

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कुंदरू की खेती में उपयुक्त जलवायु व तापमान (Kundru Cultivation Suitable Climate and Temperature)

Kundru Cultivation in hindi

इसके पौधों को गर्म एवं आद्र जलवायु की जरूरत होती है | भारत के उत्तरी इलाको में जहा ठण्ड अधिक होती है, वहां पैदावार कम प्राप्त होती है | बारिश के मौसम में इन्हे केवल 100 से 150 CM वर्षा की जरूरत होती है | किन्तु आधुनिक तकनीक के चलते सिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती सरलता से कर सकते है | 30 से 35 डिग्री तापमान पर कुंदरू की अच्छी फसल मिल जाती है |

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कुंदरू खाने के लाभ (Kundru Benefits)

कुंदरू में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते है | अन्य सब्जियों की तुलना में कुंदरू विटामिन और मिनरल का काफी अच्छा स्त्रोत है | कुंदरू की 100 GM की मात्रा में आपको विटामिन बी-2 (राइबोफ्लेविन) 0/08 मिलीग्राम, 1.6 ग्राम-फाइबर, 1.4 मिलीग्राम आयरन, 40 मिलीग्राम कैल्शियम और 0.07 मिलीग्राम विटामिन-बी 1 (थियामिन) मिल जाता है | यदि आपको मोटापा, दिल की बीमारी, ब्लड शुगर और पेट से जुड़ी समस्याए है, तो आप कुंदरू का सेवन अवश्य करे | इसके अलावा इसे कैंसर, किडनी स्टोन, नर्वस सिस्टम, डिप्रेशन, थकान, मधुमेह, पाचन दुरुस्त और वजन घटाने जैसी समस्याओ को दूर करने में लाभकारी माना गया है | कुंदरू हमारे शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाता है |

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कुंदरू खाने के नुकसान (Kundru Dis advantages)

  • यदि कोई व्यक्ति सर्जरी करवाने वाला हैं, तो उसे दो सप्ताह पहले से ही कुंदरू का सेवन बंद कर देना होता है, क्योकि कुंदरू रक्त शर्करा के स्तर को कम कर देता है |
  • वह महिलाएं जो गर्भवती है या अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, उन्हें कुंदरू के सेवन से बचना चाहिए |
  • कुंदरू का निरंतर सेवन करने से रक्त शर्करा बहुत कम हो जाती है |
  • इसके अलावा कुछ लोगो को उल्टी व् मतली जैसी समस्या भी हो सकती है |

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कुंदरू का बीज(Kundru Improved Seeds)

  • इंदिरा कुंदरू 5:- इस किस्म की कुंदरू में फलो का आकार अंडाकार और हल्का हरा होता है | यह अधिक उत्पादन देने वाली किस्म है, जिसके एक पौधे से 20 KG से अधिक का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, तथा प्रति हेक्टेयर के खेत से 400 से 425 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है |
  • इंदिरा कुंदरू 35:- कुंदरू की इस किस्म में फलो का आकार 6 CM लम्बा और 2.45 CM व्यास वाला होता है| इस किस्म के एक पौधे से 22 KG की पैदावार प्राप्त हो जाती है| यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 410 से 450 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
  • सुलभा (सी जी- 23):- यह क़िस्म 45 से 50 दिन पश्चात् पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | जिसमे निकलने वाली कुंदरू 9 CM लम्बी और गहरी हरी होती है | इसके एक पौधे से 20 से 22 KG की कुंदरू प्राप्त हो जाती है | जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 400 से 425 क्विंटल तक होता है |
  • काशी भरपूर (VRSIG – 9):- इस क़िस्म के पौधों को तैयार होने में 45 से 50 दिन लग जाते है | जिस पर आने वाले फल सफ़ेद धारिया लिए हुए हल्के हरे और अंडाकार होते है | इसके एक पौधे से 20 से 25 KG कुंदरू प्राप्त हो जाती है, तथा प्रति हेक्टेयर के खेत से 350 से 400 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है |

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कुंदरू के खेत की तैयारी व उवर्रक (Kundru Farm Preparation and Fertilizers)

कुंदरू के पौधे एक बार लग जाने के बाद 4 से 5 वर्ष तक पैदावार दे देते है | इसलिए इसकी फसल उगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर ले | इसके लिए सबसे पहले खेत की सफाई कर उसकी गहरी जुताई कर दी जाती है, और खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को निकाल दे | इसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही सूर्य की धूप लगने के लिए छोड़ दे | इसके बाद खेत में पानी लगाकर छोड़ दे | जब खेत का पानी सूख जाता है, तो खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है |

इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर उसमे पौध रोपाई के लिए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है | इन गड्डो को डेढ़ मीटर की दूरी पर पंक्तियों में तैयार किया जाता है | यह सभी गड्डे 30 CM लम्बे, गहरे और चौड़े होने चाहिए | इन गड्डो में 4 से 5 KG गोबर की खाद भर दे | कुंदरू की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए 40 से 60 KG फास्फोरस, 60 से 80 KG नाइट्रोजन, 40 KG पोटाश की मात्रा को ठीक से मिलाकर प्रति हेक्टेयर के खेत में देना होता है |

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कुंदरू की उन्नत किस्में

कुंदरू के बीजो की रोपाई बीजो से कलम को तैयार कर की जाती है | इसके लिए 4 से 12 माह पुरानी लताओं से 15-20 CM लम्बी, 1.5 CM मोटी 5 से 7 गांठो से कलमों को काटकर अलग कर ले | इन कलमों को गोबर और मिट्टी के मिश्रण से भरे हुए पॉलीथीन के थैलो में लगाकर उनकी सिंचाई कर देख रेख की जाती है | जिसके 50 से 60 दिन पश्चात् कलम में जड़े निकलना आरम्भ कर देती है | इन जड़ो को निकालकर खेत में तैयार गड्डो में उनकी रोपाई कर दी जाती है | इस दौरान 10 मादा पौधों के मध्य 1 नर पौधा लगाना उपयुक्त होता है | पौध रोपाई के लिए सितम्बर से अक्टूबर का महीना सबसे अच्छा माना जाता है |

कुंदरू फसल सिंचाई प्रबंधन (Kundru Crop Irrigation Management)

कुंदरू की फसल में पौधों को गर्मियों के मौसम में 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देना होता है | इसके अलावा फल बनने के समय खेत में नमी बनाये रखे, तथा बारिश के मौसम में उचित जल निकासी का अवश्य ध्यान रखे | क्योकि पानी भरा रहने की स्थिति में पौधे पीले पड़कर सूख जाते है |

कुंदरू की फसल में रोग एवं रोकथाम (Kundru Crop Disease and Prevention)

कुंदरू की फसल में कई तरह के कीड़े – मकोड़े वाले रोग देखने को मिल जाते है | इसमें फल मक्खी रोग जिसमे रोग का कीट फलो पर अपने अंडे दे देता है, जिससे फल सड़कर नष्ट हो जाता है | इसके अलावा धूसर रंग का गुबरैला, फलो भ्रंग रोग पौधों की पत्तियों में छेद कर उन्हें नुकसान पहुंचाता है |

इसमें चूर्ण फफूंदी रोग भी है, जो तनो और पत्तियों पर फफूंद के रूप में आक्रमण करता है, जिससे पत्तिया पीली पड़कर मुरझाने लगती है | इस प्रकार के सभी रोगो से बचाव के लिए पौधों पर गौमूत्र या नीम का के काढ़े के साथ माइक्रो झाइम का घोल बनाकर उसका छिड़काव किया जाता है |

मृदु चूर्णिल आसिता रोग:- इस क़िस्म का रोग कुंदरू के पौधों पर बदलते मौसम की वजह से देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पुरानी पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद रंग के गोल धब्बे दिखाई देने लगते है, जिसका समय के साथ आकार और संख्या भी बढ़ जाती है | इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर 0.1 प्रतिशत बाविस्टीन की मात्रा का मिश्रण तैयार कर उसका छिड़काव करे |

कुंदरू के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Kundru Fruit Harvesting, Yield and Benefits)

कुंदरू की फसल 45 से 50 दिन पश्चात पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | इसके फल 4 से 5 दिन के अंतराल में कई बार तोड़े जा सकते है | कुंदरू की पैदावार उन्नत क़िस्म, खाद, उवर्रक और फसल की देखभाल के अनुसार प्राप्त होती है | इसके खेत से किसान भाइयो को तक़रीबन 300 से 450 क्विंटल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्राप्त हो जाता है | कुंदरू का बाज़ारी भाव भी काफी अच्छा होता है, जिस हिसाब से किसान भाई कुंदरू का उत्पादन कर अच्छी कमाई भी करते है |

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