मिश्रित खेती क्या है | Mixed Farming in Hindi – मिश्रित खेती के प्रकार, लाभ व उद्धरण

मिश्रित खेती (Mixed Farming) से सम्बंधित जानकारी

यदि आप एक किसान है, तो आप अपने खेतो मे कई तरह की फसलो का उत्पादन करते होंगे, क्योंकि किसानो के लिये सबसे महत्वपूर्ण काम खेती करना होता है, जिसके लिये वो कड़ी मेहनत करते रहते है ।

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Mixed Farming

इसके बाद ही वो अपने खेतो में अच्छा उत्पादन कर पाने में सफल होते है | वहीँ अगर अधिक बारिश के कारण या फिर किसी और कारणवश किसानो की खेती में कभी – कभी कड़ी मात्रा में अत्याधिक नुकसान भी हो जाता है, जिसके चलते किसानो को बिलकुल भी फायदा नही होता है | इसलिये किसानो को एक फसल के साथ – साथ दूसरी फसल भी तैयार करनी चाहिये, जिससे किसानो को यदि एक फसल में नुकसान हो रहा है, तो किसानो को दूसरी फसल के उत्पादन से कुछ बहुत फायदा होने के साथ नुकसान से बचा जा सकता है |

एक फसल के साथ यदि किसान दूसरी फसल की भी खेती करता है, तो ऐसी की जाने वाली खेती को मिश्रित फसल के नाम से जाना जाता है। वहीँ फसलों के उत्पादन के साथ-साथ जब पशुपालन भी किया जाता है, तो ऐसी खेती को मिश्रित खेती कहते हैं।  इसलिये यदि आप भी एक किसान है, और अपको मिश्रित खेती के बारे मे अधिक जानकारी नही प्राप्त है और आप इसके बारे में जानना चाहते है, तो यहाँ पर आपको मिश्रित खेती क्या है, Mixed Farming in Hindi – मिश्रित खेती के प्रकार, लाभ व उद्धरण की पूरी जानकारी प्रदान के जा रही है ।

मिश्रित खेती का क्या मतलब होता है

मिश्रित खेती एक प्रकार से विविध खेती होती है। मिश्रित खेती वह महत्वपूर्ण खेती होती है, जिसमें मुख्य रूप फसल उत्पादन व पशुपालन एक – दूसरे पर पूर्ण रूप से निर्भर करता है। खेती की इस प्रणाली में फसल उत्पादन के साथ – साथ पशुपालन का भी काम किया जा सकता है, ऐसा करने से दोनों से बराबर लाभ प्राप्त किया जाता है । इस तरह से की जाने वाली खेती को मिश्रित खेती कहा जाता है। 

मिश्रित खेती में पशुओं का इस्तेमाल एक पूरक व्यवसाय के रूप में किया जाता है । फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुओं के रखने से फार्म पर दूध व कृषि कार्यों के लाभ के अतिरिक्त खाद भी प्राप्त हो जाती है, जिसका इस्तेमाल करके भूमि की उपजाऊ शक्ति की क्षति को रोका जा सकता है ।

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मिश्रित खेती के लाभ

1. मिश्रित खेती में पशुओं से प्राप्त होने वाले गोबर व मूत्र से भूमि की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि होती है ।

2. इस तरह की खेती करने से वर्ष के अधिकांश भाग में आय नियमित रूप से प्राप्त होती रहती है ।

3.  मुख्य व्यवसायों से प्राप्त उप — फलों (By — Products ) भूसा , पुआल , अगौले व गोबर , मूत्र आदि सभी का पूरी तरह से उपयोग कर लिया जाता है ।

4.  मिश्रित खेती करने वाले कृषक तथा उसके पारिवारिक सदस्यों को वर्ष भर नियमित रूप से कार्य मिलता रहता है ।

5. आर्थिक दृष्टिकोण से भूमि, श्रम व पूँजी का समुचित प्रयोग कर लिया जाता है ।

6. यह खेती करने से किसानो को शुद्ध आय प्रति एकड़ कृषि के अन्य प्रकार की अपेक्षा इसमें अधिक प्राप्त हो जाती है, क्योंकि ऊपरी व्यय (Overhead Charges)  वर्ष भर में अनेक पदार्थों पर विभाजित कर दिये जाते है, जिससे फसल तथा पशु उत्पादन की प्रति इकाई पर व्यय अपेक्षाकृत कम हो जाता है ।

7. पशुपालन से उपयोग के लिये कृषक को विभिन्न वस्तुओं — दूध, दही, घी, मट्ठा, अंडा, फल, सब्जी के रूप में एक पौष्टिक व संतुलित आहार प्राप्त हो जाता है । 

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मिश्रित फसल से क्या हानि है ? (Harm From Mixed Crop) 

 (i) इस खेती को करने वाले किसानो को फसलों की निराई – गुड़ाई में कठिनाई होती है ।

(ii) किसानो को उन्नत यंत्रों के प्रयोग में भी कठिनाई होती है । 

(iii) इस खेती को करने के लिये किसानो के पास अलग – अलग  फसलों के लिये अलग – अलग खरपतवार विनाशक दवाइयां या फिर यन्त्र होना आवश्यक होता है, जिसके लिये उन्हे बहुत ही कठिनाई होती है | 

 (iv) किसानो की इस खेती को करने के बाद इसकी फसलों की कटाई में भी असुविधा का सामना करना पड़ता है। 

(v) मिलवाँ फसलों की खेती से भविष्य के लिए शुद्ध बीज आसानी से नही प्राप्त कर सकते है।

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मिश्रित फसलों की खेती के लिये सावधानियाँ (Mixed Cropping Precautions)

(i) मिश्रित फसलों की खेती के लिये किसानो को फसलों का चुनाव क्षेत्र विशेष की मिट्टी, जलवायु तथा सिंचाई की उपलब्धता को ध्यान में रख कर करना होता है । 

( ii ) इस खेती को करते समय उगाई जाने वाली फसलों में आपस में पोषक तत्वों , सूर्य की रोशनी, नमी तथा स्थान के लिये अधिक स्पर्धा न हो  इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है।

(iii) किसानो को मिश्रित खेती करने के लिये एक फसल उथली जड़ों वाली तथा दूसरी गहरी जड़ों वाली का इस्तेमाल करना होता है, और साथ में उगाई जाने वाली फसलों की ऊँचाई असमान होनी चाहिये। 

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मिश्रित फसल के सिद्धान्त ( Principles of Mixed Cropping) 

फसल चक्रों में सम्मिलित करने के लिये विभिन्न फसलों का चुनाव बहुत से कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है । इनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है – 

1.जलवायु (Climate) – किसानो को मुख्य रूप से मिश्रित खेती  करने के लिये फसलों का चुनाव करते समय उस क्षेत्र की विशेष जलवायु को ध्यान में रखकर योजना बनानी चाहिये।

2. भूमि सम्बन्धी कारक (Edaphic Factors) – किसानो को उस क्षेत्र की विशेष भूमि की किस्म, उसकी रचना, संरचना, वायु संचार एवं जल की उपलब्धता आदि कारकों को ध्यान में रखते हुऐ बोई जाने वाली फसलों का चयन करना आवश्यक होता है, क्योंकि यदि आप ऐसा नही करते है, तो आपको फसल में नुकसान भी हो सकता है ।

3. सिंचाई जल (Irrigation Water) – फसलों का चुनाव करते समय किसानो को वर्षा जल के अतिरिक्त सिंचाई जल की सुविधा भी रखनी चाहिये। 

4. आर्थिक लाभ (Economic Benefit) – किसानो को मिश्रित फसलों के होने वाले लाभ से एक फसल की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होना चाहिये।

5. प्रतिस्पर्धात्मक स्वभाव ( Competitive Nature) – किसानो को इस खेती को करते समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिये, कि मिश्रित खेती में उगाई जाने वाली फसलों में सौर – ऊर्जा , मृदा नमी , स्थान तथा पोषक तत्वों आदि के लिये प्रतिस्पर्धा नहीं हो । 

6. पोषक तत्वों की उपलब्धता( Availability of Nutrients) – मिश्रित खेती में किसानो को एक फसल अपस्थानिक जड़ो वाली (Shallow Rooted) तथा दूसरी फसल गहरी जड वाली (Deep Rooted Crop ) का प्रयोग करना चाहिये ।

7. वृद्धि का स्वभाव (Habit of Growth) – किसानो को मिश्रित खेती में ली गई फसलों में एक फसल भूमि पर फैलकर चलने वाली बोनी चाहिये, तथा दूसरी फसल सीधी बढ़ने वाली के बीजो का इस्तेमाल करना चाहिये| ऐसा करने से वृद्धि के इन भिन्न स्वभावों से कार्बन डाई आक्साइड (CO2) तथा प्रकाश आदि की प्राप्ति दोनों फसलों को समान रूप प्राप्त होती रहती है |

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यहाँ पर हमनें आपको मिश्रित खेती के विषय में जानकारी उपलब्ध करायी है, अब उम्मीद है कि किसान भाइयों को यह जानकारी पसंद आयी होगी, अन्य जानकारी अपने सवाल पूछने के लिए कमेंट कर सकते है |


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