कद्दू की खेती (Pumpkin Farming) से सम्बंधित जानकारी
कद्दू की फसल को कम समय में तैयार होने वाली सब्जी के रूप में किया जाता है | कद्दू की सब्जी में कई तरह से पोषक तत्व मौजूद होते है, तथा इसकी सब्जी के उपयोग से कई तरह के स्वास्थ लाभ भी मिलते है | मटर की तरह कद्दू भी द्विबीजीय पौधों की श्रेणी में आता है |
कद्दू का इस्तेमाल हरे फलो से लेकर पके हुए फलों के साथ बीजो तक को कई तरह की खाने की चीजों में किया जाता है | खाने के अलावा कद्दू का उपयोग मिठाईयों को बनाने में भी किया जाता है |
यह पीले रंग के कद्दू जिनमे कैरोटीन की अधिक मात्रा के साथ पर्याप्त मात्रा में जिंक भी उपस्थित होता है | यह हमारे इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है, जिससे खासी-सर्दी-जुकाम, और वायरल जैसे संक्रमण जल्दी-जल्दी हमें प्रभावित नहीं कर पाते है | कद्दू की खेती को एक अच्छे मुनाफे वाली खेती के रूप में जाना जाता है | यदि आप भी कद्दू की खेती कर अधिक लाभ कमाना चाहते है, तो इस पोस्ट में आपको कद्दू की खेती कैसे होती है, Pumpkin Farming in Hindi इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है |
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कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Pumpkin Cultivation Soil Suitable)
कद्दू की खेती को करने के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है | कद्दू की फसल की अच्छी वृद्धि के लिए गर्म और आद्र दोनों ही जलवायु को उपयुक्त माना जाता है | इसकी फसल में अधिक पानी की आवश्यकता होती है, किन्तु अधिक जलभराव वाली भूमी को इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है | कद्दू की अच्छी फसल के लिए जमीन का P.H. मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए |
कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान (Pumpkin Cultivation Suitable Climate and Temperature)
कद्दू की फसल के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अच्छा माना जाता है | हमारे देश में कद्दू की खेती बारिश के मौसम में की जाती है | गर्मियों का मौसम कद्दू के पौधों की वृद्धि के लिए अच्छा माना जाता है,जबकि सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसकी फसल के लिए काफी हानिकारक होता है | कद्दू के पौधों पर फूल लगने के दौरान इन्हे अधिक बारिश की आवश्यकता नहीं होती है | क्योकि इससे फूलो के ख़राब होने की सम्भावना बढ़ जाती है | इसके अतिरिक्त बीजो के अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान तथा फलों की अच्छी वृद्धि के लिए 25 से 30 डिग्री के तापमान को अच्छा माना जाता है |
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कद्दू की फसल की उन्नत किस्मे (Pumpkin Crop Improved Varieties)
कद्दू की अच्छी फसल और उच्च उत्पादन के लिए कद्दू की उन्नत किस्मो को समय और उत्पादक क्षमता के आधार पर तैयार किया जाता है |
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कद्दू की पूसा विश्वास उन्नत किस्म
इस किस्म की फसल को अधिकतर भारत के उत्तर राज्यों में उगाया जाता है | इसमें एक कद्दू का वजन तक़रीबन 5 किलो के आसपास होता है | इसमें निकलने वाला फल हरे रंग का तथा सफ़ेद रंग के धब्बे बने होते है | इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 120 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है, तथा इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 400 क्विंटल की पैदावार होती है |
कद्दू की काशी उज्जवल किस्म (Kashi Ujjwal Variety of Pumpkin)
इस किस्म के कद्दुओं को उत्तर भारत और दक्षिण भारत में उगाया जाता है | इसका एक फल तक़रीबन 10 से 15 किलो का होता है, तथा एक पौधे में चार से पांच फल पाए जाते है | कद्दू की इस किस्म को तैयार होने में तक़रीबन 6 महीने का समय लगता है, तथा यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 550 क्विंटल की उपज देता है |
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डी.ए.जी.एच. 16 किस्म के पौधे
इस किस्म के पौधों को पककर तैयार होने में 110 दिन का समय लगता है | इस किस्म के फल देखने में हरे और सफ़ेद रंग के होते है | इसमें निकलने वाला फल तक़रीबन 12 किलो का होता है,तथा एक पौधे में 4 से 5 फल तैयार होते है | कद्दू की इस किस्म में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 450 से 500 क्विंटल की पैदावार होती है |
काशी धवन किस्म के पौधे
कद्दू की इस किस्म को पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है| इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 3 माह बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसमें निकलने वाले फल का वजन लगभग 12 किलो का होता है | इस किस्म में 600 क्विंटल की पैदावार को एक हेक्टेयर के खेत में तैयार कर लिया जाता है|
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पूसा हाईब्रिड 1
कद्दू की यह एक संकर किस्म है,जिसे वसंत ऋतु के मौसम में उगाने के लिए तैयार किया गया है | इस किस्म के फलों का रंग पीला होता है | यह चपटे और गोल आकार के होते है | इसके पौधों में लगने वाले फल का वजन 5 किलो के आसपास होता है | इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 520 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है |
कद्दू की फसल के लिए खेत को कैसे तैयार करे (Prepare the Field for Pumpkin Harvest)
कद्दू की फसल को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर देनी चाहिए | इसके बाद मिट्टी पलटने वाले हलों से एक बार फिर जुताई कर दे | इसके बाद कुछ दिनों के लिए खेत को ऐसे ही छोड़ दे ताकि मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग सके | इसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दे | खाद को ठीक से मिट्टी में मिलाने के बाद पाटा लगवा कर चला दे, इससे खेत समतल हो जायेगा | इस समतल खेत में कद्दू की फसल को उगाने के लिए क्यारियो को तैयार कर लेना चाहिए |
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कद्दू के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Pumpkin Seeds Planting Correct Time and Method)
कद्दू के बीजो की रोपाई को किसान अपने हाथ से ही करते है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 3 से 4 किलो बीजो की आवश्यकता होती है | बीजो को खेत में लगाने से पहले उन्हें थीरम या बाविस्टीन की उचित मात्रा का घोल बना कर उपचारित कर लेना चाहिए | इसके बाद इन बीजो की खेत में तैयार की गई धोरेनुमा क्यारियों में रोपाई कर दे | तैयार की गई क्यारियों के बीच में तक़रीबन 4 से 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए, वही रोपाई किये गए बीजो के मध्य तक़रीबन एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखे | इससे पौधों के विकसित होने में आसानी होगी |
कद्दू के बीजो की रोपाई पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च या अप्रैल के महीने में की जाती है, तथा वह स्थान जहाँ सिंचाई कम की जाती है, वह इसके बीजो की रोपाई को बारिश के मौसम जून में लगाया जाता है | इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे अगस्त माह में उगाया जाता है |
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कद्दू के पौधों में सिंचाई का तरीका (Pumpkin Plants Irrigation Method)
कद्दू के पौधों में बीजो के अंकुरण के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | पर्याप्त मात्रा में सिंचाई होने पर ही इसके पौधे पर लगने वाले फल अच्छे से विकास कर पाते है | कद्दू के खेत में नमी को बरक़रार रखने के लिए बीज रोपाई के 3 से 4 दिन के अंतराल में सिंचाई करने की आवश्यकता होती है | गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देना जरूरी होता है | किन्तु बारिश के मौसम यदि बारिश ठीक से हुई है तो जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए |
कद्दू के पौधों में उवर्रक की उचित मात्रा (Proper Amount of Fertiliser in Pumpkin Plants)
यदि आप कद्दू के पौधों से अच्छी पैदावार प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको इसे अच्छी मात्रा में उवर्रक देने के की आवश्यकता होती है| इसके लिए खेत की जुताई के समय तक़रीबन 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डाल अच्छे से मिला देना चाहिए| इसके अलावा जैविक खाद के रूप में कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है| किन्तु रासायनिक खाद के लिए 40KG नाइट्रोजन, 50KG पोटाश और 50KG फास्फोरस की मात्रा को खेत की आखरी जुताई के समय प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़क देना चाहिए| इसके साथ ही 40 किलो नाइट्रोजन की रासायनिक खाद को सिंचाई के साथ दो बार देना चाहिए|
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कद्दू के खेत में खरपतवार नियंत्रण (Pumpkin Weed Control)
चूंकि कद्दू के पौधों फैलाव बेल के रूप में होता है,इ सलिए इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की अधिक आवश्यकता होती है | इसके बेल भूमि की सतह पर ही होते है,इसलिए यह पौधों को अधिक हानि पँहुचाते है | कद्दू के खेत में खरपतवार पर नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है | प्राकृतिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए पौधों की नीलाई-गुड़ाई की जाती है |
इसके पौधों को 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली गुड़ाई को बीज रोपाई के तक़रीबन 20 से 25 दिन बाद करना चाहिए,तथा दूसरी निराई-गुड़ाई को 40 से 50 दिन में मध्य करना चाहिए | इसके साथ गुड़ाई के समय पौधों की जड़ो पर मिट्टी को चढ़ा देना चाहिए | कद्दू के पौधों में रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के पश्चात् बासालीन की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए |
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कद्दू के पौधों में लगने वाले रोग तथा उनकी रोकथाम (Diseases Pumpkin Plants and Their Prevention)
लालड़ी रोग
इस किस्म के रोग को पम्पकिन बीटिल भी कहा जाता है | इस रोग के लग जाने से पौधा वृद्धि करना बंद कर देता है | इस रोग का प्रभाव पौधों की जड़ो और पत्तियों पर देखने को मिलता है,जिससे मुरझाकर सूखने लगता है | ट्राइक्लोफेरान या डाईक्लोरोवास में से किसी एक दवा का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
फल मक्खी रोग
इस किस्म का रोग पौधों की वृद्धि के समय फलों पर देखने को मिलता है | सफ़ेद मक्खी कीट रोग फलों के अंदर छेद कर उनमे अंडे देते है | इस कीट रोग की सुंडी फलों के अंदर विकास कर फल को पूरी तरह से नष्ट कर देता है,जिससे फल ख़राब होकर गिर जाता है | कार्बारिल या मैलाथियान का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस कीट रोग की रोकथाम की जा सकती है |
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सफ़ेद सुंडी रोग
सफ़ेद सुंडी रोग कद्दू की फसल को अधिक प्रभावित करता है | यह रोग पौधों पर जमीन के अंदर से आक्रमण करता है | इसका रोग पौधों की जड़ो को प्रभावित करता है,जिससे पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए जुताई से समय नीम की खली का छिड़काव करना चाहिए |
मोज़ैक रोग
यह एक तरह का विषाणु जनित रोग होता है,जिसके लग जाने से पौधों का विकास पूरी तरह से रुक जाता है | इस रोग से प्रभावित फल आकार में छोटा दिखाई देता है | सफ़ेद मोज़ैक रोग पैदावार को अधिक प्रभावित करता है | इस तरह के रोग से छुटकारा पाने के लिए मोनोक्रोटोफॉस या फास्फोमिडान का उचित मात्रा में छिड़काव किया जाना चाहिए |
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एन्थ्रेक्नोज रोग
कद्दू के पौधों पर इस तरह का रोग बारिश के मौसम में अधिक देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर काले और भूरे रंग के धब्बे देखने को मिलते है | समय के साथ यह धब्बे पूरी पत्तियों पर फेल जाता है | यह रोग पौधे के विकास को पूरी तरह से रोक देता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए पौधों पर हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल का उचित मात्रा में छिड़काव करे |
फल सड़न रोग
इस तरह का रोग फल के अधिक समय तक एक ही अवस्था में रहने पर देखने को मिलता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए टेबुकोनाजोल या वैलिडामाईसीन का छिड़काव करना चाहिए | इसके अलावा फलों को समय-समय पर पलटते रहना चाहिए |
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कद्दू के फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Pumpkin Fruit Harvest, Yield and Benefits)
कद्दू के पौधे 100 से 110 दिन के अंतराल में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है| जब इसके फल ऊपर से पीले सफ़ेद रंग के दिखाई दे तो इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए ,तथा इसके हरे फलों को 70 से 80 दिन बाद तोड़ा जा सकता है| एक हेक्टेयर के खेत में कद्दू की 400 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है| कद्दू का बाजारी भाव 10 से 15 रूपए तक का होता है| जिससे किसान भाई कद्दू की एक बार की फसल कर 4 से 6 लाख की अच्छी कमाई कर सकते है|
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