लहुसन को एक लाभकारी फसल के रूप में जाना जाता है | यदि आप भी लहसुन की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते है, तो इस पोस्ट में आपको Lahsun ki Kheti , Garlic Crop की खेती से कमाई, लहसुन की खेती कैसे करे इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है|
Contents
- 1 लहसुन (Garlic) की खेती से सम्बंधित जानकारी
- 1.1 Lahsun ki Kheti in Hindi
- 1.2 लहसुन की खेती कैसे करे (Garlic Farming)
- 1.2.1 लहसुन की उन्नत किस्मे (Garlic Improved Varieties)
- 1.2.2 लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Garlic Cultivation Suitable Climate)
- 1.2.3 लहसुन की खेती में उपयुक्त खाद एवं उर्वरक (Garlic Cultivation Suitable Manures and Fertilizers)
- 1.2.4 लहसुन की फसल में खाद एवं उर्वरक देने का तरीका (Garlic Crop Manuring and Fertilizer Method)
- 1.2.5 लहसुन के बीजो की बुवाई का तरीका (Garlic Seeds Sowing Method)
- 1.3 लहसुन की फसल में लगने वाले कीट/रोग (Pests/Diseases in Garlic Crop)
- 1.4 लहसुन की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Garlic Crop Weed control)
- 1.5 Garlic Crop की खेती से कमाई (Garlic Harvesting and Yield/Benefit)
लहसुन (Garlic) की खेती से सम्बंधित जानकारी
लहसुन को नगदी फसल के रूप में उगाया जाता है | इसे एक कंद मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है | लहसुन में एलसिन नामक तत्व उपस्थित होता है, जिस वजह से इसमें एक खास तरह की गंध व स्वाद में तीखापन होता है | लहसुन की एक गांठ में कई कंद होते है,जिन्हे अलग कर और छीलकर औषधीय तथा मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है | लहसुन अनेक प्रकार की बीमारियों में लाभदायक होता है, गले तथा पेट की बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए लहसुन का इस्तेमाल किया जाता है | लहसुन की गंध और तीखे स्वाद के लिए इसमें मौजूद सल्फर के यौगिक को उत्तरदायी माना जाता है |
सेब की तरह ही लहसुन में भी एक कहावत है कि “लहसुन की कली एक, दिन डॉक्टर को दूर रखती है” | इसके अतिरिक्त इसमें अन्य तरह के पौष्टिक तत्व उपस्थित होते है, जिसका इस्तेमाल आचार, चटनी, मसाले तथा सब्जी आदि को बनाने में करते है |
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Lahsun ki Kheti in Hindi
लहुसन की खेती लगभग देश के सभी कोनो में की जाती है | इसका इस्तेमाल मसालों के अतिरिक्त औषधीय रूप में भी अधिक किया जाता है | सुगंध और स्वाद के चलते अनेक प्रकार की सब्जियों एवं माँस के विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में लहसुन को खासकर इस्तेमाल किया जाता है| ब्लड प्रेशर, पेट के विकारो, पाचन विकृतियों, कैंसर, गठिया की बीमारी, फेफड़ो से सम्बंधित रोग, नपुंसकता व खून की बीमारी तथा अन्य बिमारियों में लहसुन को एक औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है|
लहसुन में एण्टीबैक्टीरिया तथा एण्टी कैंसर गुण उपस्थित होते है, जिससे इसे अनेक बीमारियों में प्रयोग करते है | विदेशी मुद्रा को अर्जित करने में लहसुन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | मध्य प्रदेश में लहसुन का क्षेत्रफल तक़रीबन 60,000 हेक्टेयर तथा उत्पादन में 270 हजार मेट्रिक टन के आसपास है | लहसुन की खेती को लगभग प्रदेश के सभी जिलों में किया जाता है | वर्तमान समय में मध्य प्रदेश में प्रसंस्करण इकाईया कार्यरत है, जिसमे पाउडर, पेस्ट, चिप्स को तैयार कर विदेशो में निर्यात किया जाता है | यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का एक बड़ा सोर्स है| इसके अलावा अन्य प्रदेशों में भी प्रमुख फसल के रूप में होता है | उत्तर प्रदेश में भी इसकी फसल की अच्छी उपज होती है |
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लहसुन की खेती कैसे करे (Garlic Farming)
लहसुन की खेती करना आसान नहीं होती है, यदि इसकी जानकारी सही से न हो तो अच्छी उपज नहीं की जा सकती है, यहाँ आपको लहसुन की खेती करने से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है, जो इस प्रकार है:-
लहसुन की उन्नत किस्मे (Garlic Improved Varieties)
उत्पादन के क्षेत्र से लहसुन को दो भागो में बांटा गया है | पहले वर्ग में वह लहसुन आते है, जिनमे केवल गांठ होती है, जवे नहीं होते है | इस किस्म का इस्तेमाल केवल ओषधिक रूप में किया जाता है | लहसुन के दूसरे वर्ग में लहसुन में अनेक जवे पाए जाते है, जिन्हे अनेक प्रकार के व्यंजनों को बनाने में इस्तेमाल करते है |
जामुना सफेद (जी-1) :- लहसुन की इस किस्म में जवें गांठ में होते है,इसमें एक गांठ में 28-30 जवें तथा रंग उजला होता है | इस किस्म को तैयार होने में 155-160 दिन का समय लगता है | पैदावार के मामले में इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 से 180 क्विंटल का उत्पादन होता है | यह परपल ब्लाच रोग अवरोधी होते है |
एग्रोफाउण्ड सफेद :- लहसुन की यह किस्म उजले रंग की होती है,जिसमे प्रति गांठ 20-25 जवें होते है | प्रति हेक्टेयर के हिसाब से यह 130-140 क्विंटल की पैदावार देता है | यह परपल ब्लॉच अवरोधी किस्म है | इसमें फसल को तैयार होने में 160-165 दिन का समय लगता है |
पंजाब लहसुन :- इस किस्म की फसल में गांठ तथा जवां दोनों उजले रंग के होते है | इसमें प्रति हेक्टेयर 90-100 क्विंटल की पैदावार होती है |
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लहसुन 56-4 :- इस किस्म के लहसुन की गांठो का रंग लाल होता है | इसमें एक गांठ में 25-35 जवे होते है | यह किस्म 150-160 में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | इसकी प्रति हेक्टेयर उपज 80 से 100 क्विंटल होती है |
जमुना सफेद-2 (जी. 50) :- इसमें एक गांठ में 18-20 जवे होती है | यह उजले और ठोस रंग की होती है | इस किस्म की फसल को तैयार होने में 160-170 दिन लगते है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 130-150 क्विंटल की पैदावार देता है |
जमुना सफेद-3 (जी—282) :- इस किस्म में जवां ठोस और बड़े आकार का होता है | इसमें जवां सफ़ेद और उसके अंदर का गूदा क्रीम कलर का होता है | इस किस्म को तैयार होने में 140-150 दिन का समय लगता है | लहसुन की यह किस्म अधिक पैदावार के लिए जानी जाती है | इसमें प्रति हेक्टेयर 175-200 क्विंटल की पैदावार होती है |
एग्रोफाउण्ड पार्ववती :- लहसुन की यह एक उन्नत किस्म है,जिसमे एक गांठ में 10-16 जवे होते है | इस किस्म को तैयार होने में 160-165 दिन का समय लगता है | यह प्रति हेक्टेयर में 175-225 क्विंटल की क्षमता से पैदावार देता है |
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लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Garlic Cultivation Suitable Climate)
लहसुन की खेती के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है | अधिक सर्दी और अधिक गर्मी दोनों इसके फसल के लिए उपयुक्त नहीं होते है | लहसुन के कंदो को तैयार होने के लिए छोटे दिनों वाले तापमान की आवश्यकता होती है | इसकी खेती को करने के लिए 29.35 डिग्री सेल्सियस का तापमान तथा 10 घंटे का छोटा दिन और 70% आद्रता को उपयुक्त माना जाता है |
लहसुन की खेती में उपयुक्त खाद एवं उर्वरक (Garlic Cultivation Suitable Manures and Fertilizers)
लहसुन की अच्छी पैदावार को प्राप्त करने के लिए खेती में पुरानी गोबर की खाद/कम्पोस्ट को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200-300 क्विंटल की मात्रा को डालना होता | इसके अतिरिक्त नेत्रजन की 80-100 KG की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालना चाहिए, तथा फास्फोरस 50-60 KG, पोटास 70-80 KG और जिंक सल्फेट की 20-25 KG की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालना चाहिए |
लहसुन की फसल में खाद एवं उर्वरक देने का तरीका (Garlic Crop Manuring and Fertilizer Method)
लहसुन के बीजो की रोपाई से 15 से 20 दिन पहले खेत में कम्पोस्ट या गोबर खाद को डालकर अच्छे से जुताई करवा देनी चाहिए | इसके बाद तीन बराबर भागो में नेत्रजन, फास्फोरस, पोटास और जिंक को मिलाकर खेत की अंतिम जुताई बीज रोपाई से दो दिन पहले खेत में मिला दे | इसके बाद पहली सिंचाई को 25 – 30 दिन बाद खेती से घास को निकालकर करना चाहिए | दूसरी निगरानी 30-50 दिन बाद करनी चाहिए |
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लहसुन के बीजो की बुवाई का तरीका (Garlic Seeds Sowing Method)
लहसुन के बीजो की बुवाई करते समय यह जरूर ध्यान रखे की बुवाई वाले कंद बिलकुल स्वस्थ एवं बड़े आकार के हो| एक हेक्टेयर के खेत में बुवाई के लिए 5-6 क्विंटल बीजो की आवश्यकता होती है | कंदो की बुवाई को सीधे तौर पर न करके उन्हें मैकोजेब+कार्बेंडिज़म दवा की 3 ग्राम मात्रा का मिश्रण बना कर बीजो को उपचारित कर लेना चाहिए| लहसुन के बीजो की बुवाई को कूडो, छिड़काव या डिबलिंग विधि द्वारा किया जाता है |
कलियों की बुवाई के समय कलियों के हलके हिस्से को ऊपर की और रखते हुए 5-7 से.मी. की गहरायी में गाड़कर मिट्टी से ढक दे| कलियों को बोते समय दो कलियों के बीच में 8 से.मी. की दूरी व दो कतारों के बीच में 15 से.मी. की दूरी अवश्य रखे | बीजो की बुवाई को बड़े स्तर पर करने के लिए गार्लिक प्लान्टर का इस्तेमाल कर सकते है|
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लहसुन की फसल में लगने वाले कीट/रोग (Pests/Diseases in Garlic Crop)
थ्रिप्स कीट:- यह कीट पौधों की पत्तियों का रस चूस कर उसे पूरी तरह से नष्ट कर देता है | यह कीट देखने में छोटे और पीले रंग के होते है | इस कीट के प्रकोप से पत्तियों के शीर्ष भूरे मुरझाकर बेकार हो जाते है| इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली./15 ली. पानी में मिलाकर तथा थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम / हे. + सेंडोविट 1 ग्राम की मात्रा को प्रति लीटर पानी के मिश्रित कर 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है|
झुलसा रोग:- इस रोग के लग जाने से पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर हलके नारंगी रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है, यह रोग पैदावार को प्रभावित करता है | इस तरह के रोग पर नियंत्रण पाने के लिए मैकोजेब की 2.5 ग्राम की मात्रा को एक लीटर पानी या कार्बेंडिज़म की 1 ग्राम की मात्रा को प्रति लीटर पानी में अच्छे से मिश्रित कर दो बार छिड़काव करना चाहिए | इसके साथ ही आक्सीक्लोराईड 2.5 ग्राम की मात्रा या सेंडोविट की 1 ग्राम की मात्रा को एक लीटर पानी में मिश्रित कर 15 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव करना चाहिए |
लहसुन की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Garlic Crop Weed control)
लहसुन के खेत में पहली सिचाई के 15-20 दिन बाद खेत में खरपतवार दिखने पर हाथ या खुरपी से निराई-गुड़ाई विधि का इस्तेमाल कर खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए | इसके बाद समय-समय पर जब खरपतवार दिखे तो उसकी निलाई-गुड़ाई कर दे | लहसुन की फसल को खरपतवार के बचाना बहुत जरूरी होता है |
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Garlic Crop की खेती से कमाई (Garlic Harvesting and Yield/Benefit)
लहसुन की फसल 130-180 दिन में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | जब लहसुन के पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखने लगे उस दौरान इनकी सिंचाई बंद कर दे | इसके कुछ दिन पश्चात् ही लहसुन के गांठो की खुदाई कर लेना चाहिए | खुदाई से निकाले गए गांठो को ठीक तरह से 3-4 दिन तक छाया में अच्छे से सुखा ले | इसके बाद 2-3 सेंटीमीटर की दूरी छोड़ते हुए पत्तियों को कंदो से अलग कर ले | ठीक तरह से सूखे हुए गांठो को 70% की आद्रता पर 6 से 8 महीनो तक भंडारित कर सकते है|
लहसुन की पैदावार फसल की देखकर और प्रजातियों पर निर्भर करती है | इसकी औसतन पैदावार प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 से 200 क्विंटल होती है | लहसुन का बाजारी भाव काफी अच्छा होता है,जिस वजह से किसान भाई लहसुन की फसल कर अच्छी कमाई भी कर सकते है |
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