हरित क्रांति के बारे में जानने के लिए हमे काफी समय पहले जाना होगा | जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और विजय प्राप्त अमेरिकी सेना उस वक़्त जापान में थी साथ ही कृषि अनुसन्धान सेवा के एस सिसिल सैल्मन भी थे|
जापान के हालात देखते हुए यह विचार होने लगा था कि जापान का पुनर्निर्माण कैसे किया जाये| सैल्मन का विचार कृषि उपज पर था, उन्हें नोरिन नामक गेहूं की एक ऐसी क़िस्म मिली जिसमे दाना काफी बड़ा होता था| सैल्मन ने इसके और बेहतर परिणाम के लिए इसे शोध हेतु अमरीका भेजा | 13 वर्ष तक के प्रयोगो के उपरांत वर्ष 1959 में गेन्स नाम की क़िस्म तैयार हुई |
Contents
- 1 हरित क्रांति (Green Revolution) से सम्बंधित जानकारी
- 2 भारतीय कृषि में तकनीकी एवं संस्थागत सुधार (Technological and Institutional Reforms in Indian Agriculture)
- 2.1 कृषि में रासायनिक उवर्रको का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizer in Agriculture)
- 2.2 उन्नतशील बीजों का अधिक इस्तेमाल (Increased use of growing seeds)
- 2.3 सिंचाई एवं पौध संरक्षण (Irrigation and Plant Protection)
- 2.4 कृषि सेवा केंद्र तथा उधोग नियम (Agricultural Service Center and Industry Rules)
- 2.5 अन्य निगमों की स्थापना (Establishment of other Corporations)
- 2.6 मृदा परीक्षण तथा भूमि संरक्षण (Soil Testing and Land Conservation)
- 2.7 कृषि शिक्षा तथा अनुसन्धान (Agricultural Education and Research)
- 2.8 भारत में हरित क्रांति की पृष्ठभूमि (Green Revolution Background in India)
- 3 हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव (Green Revolution Positive Effects)
- 4 हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव (Green Revolution Negative Effects)
- 4.1 1. गैर-खाद्य अनाज छोड़ दिया गया (Non-food Grains Discarded)
- 4.2 2. HYVP का सीमित कवरेज (HYVP Limited Coverage)
- 4.3 3. क्षेत्रीय असमानताएँ (Regional Disparities)
- 4.4 4. रसायनों का अत्यधिक उपयोग (Excessive Use of Chemicals)
- 4.5 5. पानी की खपत (Water Consumption)
- 4.6 6. मृदा और फसल उत्पादन पर प्रभाव (Impact on Soil and Crop Production)
- 4.7 7. बेरोजगारी (Unemployment)
- 4.8 8. स्वास्थ्य के लिए खतरा (Health Hazard)
हरित क्रांति (Green Revolution) से सम्बंधित जानकारी
इसके बाद नॉरमन बोरलॉग ने इसका मैक्सिको की सबसे अच्छी क़िस्म के साथ संकरण कर एक नयी क़िस्म का निर्माण किया, जिसके उपरांत हरित क्रांति का आरम्भ हुआ | यदि आप भी जानना चाहते है कि हरित क्रांति क्या है, भारत में हरित क्रांति के जनक, Green Revolution Explained in Hindi तो इसके बारे में यहाँ पर जानकारी दी गई है|
डाबर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
भारत में हरित क्रांति के जनक (Father of Green Revolution in India)
भारत में हरित क्रांन्ति का आरम्भ सन 1966-67 के मध्य हुआ | इस हरित क्रांति का पूरा श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को समर्पित हैं। परन्तु भारत में हरित क्रांति का जनक एम. एस. स्वामीनाथन को कहा गया है। भारत के कृषि एवं खाद्य मन्त्री बाबू जगजीवन राम हरित क्रान्ति के रूप में जाने जाते है, उन्होंने एम॰एस॰ स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों पर हरित क्रांति का सफल संचालन किया, जिसका भविष्य में सन्तोषजनक प्रभाव भी देखने को मिला।
हरित क्रान्ति से अभिप्राय देश के ऐसे सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज कर संकर तथा बौने बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि करना हैं। भारत में हरित क्रान्ति कृषि में होने वाली उस विकासशील विधि का नतीजा है, जो कि 1960 के दशक में परम्परागत कृषि को और आधुनिक कर तकनीकि द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने के रूप जानी गयी ।
उस समय यह तकनीक कृषि के क्षेत्र में तत्परता से आयी, इस तकनीक का इतनी तेजी से विकास हुआ कि इसने थोड़े ही समय में कृषि के क्षेत्र में इतने आश्चर्यजनक परिणाम दिए कि देश के योजनाकारों, कृषि विशेषज्ञो तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को ही ‘हरित क्रान्ति’ का नाम दे दिया। इसे हरित क्रान्ति की संज्ञा इसलिये भी दी गई, क्योंकि इसने फलस्वरूप भारतीय कृषि को निर्वाह स्तर से ऊपर उठकर आधिक्य स्तर पर पहुंचाया।
हरित क्रांति के चलते ही भारत के कृषि क्षेत्र में अधिक वृद्धि हुई तथा कृषि में हुए गुणात्मक सुधार के चलते देश में कृषि का उत्पादन बढ़ा है | देश के खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता देखने को मिली है , व्यावसायिक कृषि की भी उन्नति हुई है | क्षेत्रजीवीयो के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुए है, और कृषि गहनता में भी वृद्धि हुई है | देश में हरित क्रांति के परिणाम स्वरुप गेहू, गन्ना, मक्का, तथा बाजरे आदि की फसलों में प्रति हेक्टयेर व कुल उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है | कृषि में हुई उपलब्धियों में तकनीकी एवं संस्थागत परिवर्तन तथा उत्पादन में हुई वृद्धि के लिए हरित क्रांति को अनुगामी रूप में देखा जाता है |
कृषि विज्ञान केंद्र क्या है
भारतीय कृषि में तकनीकी एवं संस्थागत सुधार (Technological and Institutional Reforms in Indian Agriculture)
इसके माध्यम से भारत में भी कृषि क्षेत्र में तकनीकी एवं संस्थागत सुधार करने हेतु बहुत से क्षेत्रों में कार्य किया गया, जिसके बाद अच्छे और चौकाने वाले परिणाम भी देखने को मिले इसके बारे में जानकारी कुछ इस प्रकार है:-
कृषि में रासायनिक उवर्रको का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizer in Agriculture)
देश में नयी कृषि नीति के परिणामस्वरूप रासायनिक उवर्रको की उपयोग की मात्रा को तेजी से बढ़ा दिया गया | वर्ष 1960-1961 में रासायनिक उवर्रको का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर दो किलोग्राम होता था, जो कि वर्ष 2008-2009 में कई गुना बढ़कर 128.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गयी | इसी तरह रासायनिक खादों कि कुल खपत 1960-1961 में 2.92 लाख टन से बढ़ कर वर्ष 2008-2009 में 249.09 लाख टन हो गयी है |
उन्नतशील बीजों का अधिक इस्तेमाल (Increased use of growing seeds)
कृषि उपज को बढ़ाने के लिए देश में अधिक उपज देने वाले उन्नतशील बीजों का अधिक उपयोग होने लगा है तथा बीजों की नई – नई किस्मों की खोज भी हुई है। अभी तक अधिक उपज देने वाली फसले गेहूँ, धान, बाजरा, मक्का व ज्वार ही है, लेकिन गेहूँ में सबसे अधिक वृद्धि देखने को मिली है। वर्ष 2008-2009 में 1,00,000 क्विंटल प्रजनक बीज तथा 9.69 लाख क्विंटल आधार बीजों का उत्पादन हुआ तथा 190 लाख प्रमाणित बीज वितरित किये गये।
सिंचाई एवं पौध संरक्षण (Irrigation and Plant Protection)
नयी विकास निति के अनुसार देश में सिंचाई तकनीक का भी तेजी से विस्तार हुआ है | जहां वर्ष 1951 में देश की कुल सिंचाई क्षमता 223 लाख हेक्टेयर थी, वही 2008 -2009 में बढ़कर 1,073 लाख हेक्टेयर हो गई है |
इसके साथ पौध संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया गया है | जिसके उपरांत खरपतवार व कीटों का नाश करने के लिए दवा का छिड़काव किया जाने लगा है और साथ ही टिड्डी दलों से बचाव करने का भी नियंत्रण प्रयास किया जा रहा है | वर्तमान समय में समेकित कृषि प्रबंध के अंतर्गत परिस्थति अनुकूल कृषि नियंत्रण का कार्य भी लागू किया गया |
बहुफ़सली उत्पादन (Multi-Crop Production)
इस कार्यक्रम के अंतर्गत एक ही भूमि पर एक वर्ष में एक से अधिक बार फसल का उत्पादन करना है | सरल शब्दों में बोले तो भूमि की उपजाऊ शक्ति को ख़राब किये बिना, भूमि क्षेत्र में अधिक उत्पादन करना ही बहुफसली कार्यक्रम के अंतर्गत आता है | लगभग 36 लाख हेक्टेयर भूमि में वर्ष 1966 – 1967 में बहुफसली कार्यक्रम लागू किया गया था | जो की वर्तमान समय में भारत की 71 प्रतिशत संचित भूमि पर कार्यक्रम लागू है |
आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग (Using Modern Agricultural Implements)
हरित क्रांति एवं नयी कृषि के विकास में आधुनिक कृषि उपकरणों का बहुत अधिक योगदान रहा है | आधुनिक कृषि उपकरण जैसे – ट्रेक्टर , थ्रेसर ,हार्वेस्टर, बुलडोज़र तथा डीज़ल व बिजली से चलने वाले पम्पसेट आदि | इस तरह से कृषि में पशुओ की अपेक्षा मानव शक्ति द्वारा प्रस्थापित संचालन शक्ति द्वारा किया जाता है | जिससे कृषि के क्षेत्र में उत्पादकता में कई गुना वृद्धि हुई है |
कृषि सेवा केंद्र तथा उधोग नियम (Agricultural Service Center and Industry Rules)
देश के कृषको में व्यवसाय की सहायता बढाने व साहसी क्षमता को विकसित करने के लिए देश में कृषि सेवा केन्द्रो की स्थापना की गयी | इस योजना में कृषको को पहले तकनीकी का अभ्यास कराया जाता था | फिर उन्हें सेवा केन्द्रो को स्थापित करने के लिए कहा जाता था | इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रीयकृत बैंको द्वारा सहायता दी गई | देश में अब तक लगभग 1,314 कृषि सेवा केंद्र स्थापित किये गए |
इसके अलावा देश में सरकारी नीति के अनुसार तक़रीबन 17 राज्यों में कृषि उद्योग निगमों की स्थापना हुई है | कृषि उपकरण व मशीनरी की आपूर्ति तथा उपज प्रधोगिकी एवं भण्डारण का प्रलोभन भी इन्ही निगमों का कार्य है |
अन्य निगमों की स्थापना (Establishment of other Corporations)
हरित क्रांति की उन्नति अधिक उपज देने वाले किस्म व उत्तम वर्ग के बीजो पर निर्भर करती है | देश में इसके लिए लगभग 400 कृषि फॉर्मो की स्थापना की गयी | राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना 1963 ने हुई थी | इस निगम का मुख्य उद्देश्य कृषि उपज का विपणन, प्रशंसकरण एवं स्टोरेज करना है | राष्ट्रीय बीज परियोजना का आरम्भ विश्व बैंक की सहायता से हुई जिसके अंतर्गत कई बीज निगमों की स्थापना हुई |
भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारिता विपणन संघ एक शीर्ष विपणन संस्था है जो कि प्रबंधन, विपणन, एवं कृषि सम्बंधित चुनिंदा वस्तुओ के आयात – निर्यात का कार्य भी करता है | साथ ही राष्ट्रीय कृषि ,एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना भी कृषि वित्त के कार्य हेतु की गयी | कृषि के लिए खाद्य निगम व उवर्रक साख गारंटी निगम, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की भी स्थापना हुई |
पतंजलि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
मृदा परीक्षण तथा भूमि संरक्षण (Soil Testing and Land Conservation)
मृदा परीक्षण के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी का सरकारी प्रोगशालाओ में परीक्षण किया गया | जिसका मुख्य उद्देश्य भूमि की उवर्रक क्षमता का पता कर कृषको को उनके अनुरूप रसायनिक खादों व बीजो के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है | वर्तमान समय में प्रति वर्ष लगभग 7 लाख नमूनों का परीक्षण इन सरकारी प्रयोगशालाओ में किया जाता है | ऐसी ही कुछ रन्निंग प्रयोगशालाएं भी स्थापित है जिनका कार्य गांव – गांव जाकर मिट्टी का परीक्षण कर किसानो को सलाह देना है|
इसके साथ ही कृषि योग्य भूमि को विनाश से रोकने तथा उबड़ – खाबड़ भूमि को समतल कर कृषि योग्य बनाना | यह संरक्षण सुविधा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में तेजी से लागू किया जा चुका है|
मेगा फूड पार्क योजना
कृषि शिक्षा तथा अनुसन्धान (Agricultural Education and Research)
सरकार द्वारा कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पंतनगर में प्रथम कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हुई | जिसके बाद कृषि से सम्बंधित उच्च शिक्षा के लिए 4 कृषि विश्वविद्यालय, 39 राज्य कृषि विश्वविद्यालय और इंफोल में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है | 53 केंद्रीय संसथान, 32 राष्ट्रीय अनुसन्धान केंद्र , 12 परियोजन निर्देशालय, 64 अखिल भारतीय अनुसन्धान भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् द्वारा लागू किये गए | साथ ही देश में 527 कृषि विज्ञान केंद्र है , जो कि कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण में शिक्षण का कार्य कर रहे है|
भारत में हरित क्रांति की पृष्ठभूमि (Green Revolution Background in India)
- 1943 में, भारत दुनिया के सबसे खराब रिकॉर्ड किए गए खाद्य संकट से पीड़ित था| बंगाल अकाल, जिसके कारण पूर्वी भारत में लगभग 4 मिलियन लोग भूख के कारण मारे गए।
- 1947 में आजादी के बाद भी 1967 तक सरकार ने बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्रों के विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन जनसंख्या खाद्य उत्पादन की तुलना में बहुत तेज गति से बढ़ रही थी।
- इसने उपज बढ़ाने के लिए तत्काल और कठोर कार्रवाई का आह्वान किया। कार्रवाई हरित क्रांति के रूप में हुई।
- भारत में हरित क्रांति उस अवधि को संदर्भित करती है, जब भारतीय कृषि को आधुनिक तरीकों और प्रौद्योगिकी जैसे कि HYV बीज, ट्रैक्टर, सिंचाई सुविधाओं, कीटनाशकों और उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल के कारण एक औद्योगिक (Industrial) सिस्टम में परिवर्तित किया गया था।
- इसे अमेरिका और भारत सरकार और फोर्ड एंड रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
- भारत में हरित क्रांति मोटे तौर पर गेहूं क्रांति है क्योंकि 1967-68 और 2003-04 के बीच गेहूं के उत्पादन में 3 गुना से अधिक की वृद्धि हुई, जबकि अनाज के उत्पादन में कुल वृद्धि केवल 2 गुना थी।
कृषि वैज्ञानिक (Agricultural Scientist) कैसे बने
हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव (Green Revolution Positive Effects)
1. फसल उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि (Crop Production Huge Increase)
- इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1978-79 में 131 मिलियन टन का अनाज उत्पादन हुआ और भारत को दुनिया के सबसे बड़े कृषि उत्पादकों में से एक के रूप में स्थापित किया।
2. खाद्यान्नों का कम आयात (Low Import of Food Grains)
- भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया और केंद्रीय पूल में पर्याप्त भंडार था, यहां तक कि कभी-कभी, भारत खाद्यान्न निर्यात करने की स्थिति में था।
- खाद्यान्न (Food grains) की प्रति व्यक्ति शुद्ध उपलब्धता में भी वृद्धि हुई है।
3. किसानों को लाभ (Farmers Benefits)
- हरित क्रांति की शुरूआत नें किसान भाइयों को अपनी इनकम के स्तर को बढ़ाने में सहायता प्रदान की।
- कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए किसानों ने अपनी अधिशेष आय को वापस जोत दिया।
- 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले बड़े किसानों को इस क्रांति से विशेष रूप से विभिन्न आदानों जैसे HYV बीज, उर्वरक, मशीन आदि में बड़ी मात्रा में निवेश करके लाभान्वित किया गया था। इसने पूंजीवादी खेती को भी बढ़ावा दिया।
4. औद्योगिक विकास (Industrial Development)
- क्रांति ने बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण लाया जिसने ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेसर, कंबाइन, डीजल इंजन, इलेक्ट्रिक मोटर, पंपिंग सेट इत्यादि जैसी विभिन्न प्रकार की मशीनों की मांग पैदा की।
- इसके अलावा, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी आदि की मांग में भी काफी वृद्धि हुई है।
- कृषि आधारित उद्योगों के रूप में जाने जाने वाले विभिन्न उद्योगों में कई कृषि उत्पादों का उपयोग कच्चे माल के रूप में भी किया जाता था।
5. ग्रामीण रोजगार (Rural Employment)
- बहुफसली और उर्वरकों के उपयोग के कारण श्रम शक्ति की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- हरित क्रांति ने न केवल कृषि श्रमिकों के लिए बल्कि औद्योगिक श्रमिकों के लिए कारखानों और पनबिजली स्टेशनों जैसी संबंधित सुविधाओं का निर्माण करके बहुत सारे रोजगार उत्पन्न किए।
हरी खाद कैसे बनती है
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव (Green Revolution Negative Effects)
1. गैर-खाद्य अनाज छोड़ दिया गया (Non-food Grains Discarded)
हालांकि गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का सहित सभी खाद्यान्न क्रांति से प्राप्त हुए हैं, अन्य फसलों जैसे मोटे अनाज, दालें और तिलहन को क्रांति के दायरे से बाहर रखा गया था।
2. HYVP का सीमित कवरेज (HYVP Limited Coverage)
- अधिक उपज देने वाला किस्म कार्यक्रम (HYVP) केवल पांच फसलों गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का तक सीमित था। इसलिए गैर-खाद्यान्नों को नई रणनीति के दायरे से बाहर रखा गया।
- गैर-खाद्य फसलों में HYV बीज या तो अभी तक विकसित नहीं हुए थे या वह किसानों के लिए अपने गोद लेने के जोखिम के लिए पर्याप्त नहीं थे।
3. क्षेत्रीय असमानताएँ (Regional Disparities)
- इस क्रांति प्रौद्योगिकी (Technology) नें अंतर-क्षेत्रीय स्तरों पर आर्थिक विकास (Economic Development) में बढ़ती असमानताओं को जन्म दिया है।
- यह अब तक कुल फसली क्षेत्र का केवल 40 प्रतिशत प्रभावित हुआ है और 60 प्रतिशत अभी भी इससे अछूता है।
- सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र उत्तर में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं।
- इसने असम, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा सहित पूर्वी क्षेत्र और पश्चिमी और दक्षिणी भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों को शायद ही छुआ हो।
4. रसायनों का अत्यधिक उपयोग (Excessive Use of Chemicals)
- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उन्नत सिंचाई परियोजनाओं और फसल किस्मों के लिए कीटनाशकों और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ।
- हालांकि कीटनाशकों के गहन उपयोग से जुड़े उच्च जोखिम के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिए बहुत कम या कोई प्रयास नहीं किया गया।
- आमतौर पर अप्रशिक्षित खेत मजदूरों द्वारा निर्देशों या सावधानियों का पालन किए बिना फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता था।
- इससे फसलों को फायदे से ज्यादा नुकसान होता है और यह पर्यावरण और मिट्टी के प्रदूषण का कारण भी बनता है।
5. पानी की खपत (Water Consumption)
- हरित क्रांति के दौरान शुरू की गई फसलें जल प्रधान फसलें थीं।
- इनमें से अधिकांश फसलें अनाज हैं, जिन्हें लगभग 50% आहार जल की आवश्यकता होती है।
- नहर प्रणाली शुरू की गई और सिंचाई पंपों ने भी भूजल को चूसा, जैसे कि गन्ना और चावल जैसी पानी की गहन फसलों की आपूर्ति करने के लिए, इस प्रकार भूजल स्तर में गिरावट आई।
- पंजाब एक प्रमुख गेहूं और चावल की खेती करने वाला क्षेत्र है और इसलिए यह भारत में सबसे अधिक पानी की कमी वाले क्षेत्रों में से एक है।
6. मृदा और फसल उत्पादन पर प्रभाव (Impact on Soil and Crop Production)
- फसल उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए बार-बार फसल चक्र से मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
- नए प्रकार के बीजों की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसानों ने उर्वरक का उपयोग बढ़ाया।
- इन क्षारीय रसायनों के उपयोग से मिट्टी का पीएच स्तर बढ़ गया।
- मिट्टी में जहरीले रसायनों ने लाभकारी रोगजनकों को नष्ट कर दिया, जिससे उपज में और गिरावट आई।
7. बेरोजगारी (Unemployment)
- पंजाब को छोड़कर और कुछ हद तक हरियाणा में हरित क्रांति के तहत कृषि यंत्रीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरों के बीच व्यापक बेरोजगारी पैदा की।
- सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोगो में से निर्धन, गरीब और ऐसे किसान जिनके पास अपनी स्वयं की भूमि नही थी।
8. स्वास्थ्य के लिए खतरा (Health Hazard)
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे फॉस्फेमिडोन, मेथोमाइल, फोरेट, ट्रायज़ोफोस और मोनोक्रोटोफॉस के बड़े पैमाने पर उपयोग के परिणामस्वरूप कैंसर, गुर्दे की विफलता, मृत शिशुओं और जन्म दोषों सहित कई गंभीर स्वास्थ्य बीमारियाँ हुईं।
भारत में कृषि आधारित उद्योग कौन-कौन से हैं`
हरित क्रांति उस क्रांति को कहा जाता है, जिसका सीधा सम्बन्ध कृषि क्षेत्र में तीव्र वृद्धि से है, जिससे रासायनिक उर्वरक तथा बीज के अत्यधिक उत्पादन से है।
Green Revolution की शुरुआत सन 1966-67 में हुई थी और इसे सर्वप्रथम मेक्सिको के प्रोफेसर नारमन बोरलॉग के शुरू किया था।
हरित क्रांति वह क्रांति है जिसके अंतर्गत खाद्यान के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा विभिन प्रकार के कार्यक्रमों का संचालन किया गया था। इसके माध्यम से देश में कृषि क्षेत्र की उपज में तीव्र वृद्धि दर्ज की गयी।
हरित क्रांति के दौरान सरकार द्वारा कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्न क्षेत्रों पर कार्य किया गया था –अधिक उपज देने वाले उन्नत बीजों का प्रयोग, रासायनिक उवर्रको, खाद एवं कीटनाशक का प्रयोग, आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग, सिंचाई एवं पौध संरक्षण, बहुफ़सली उत्पादन, कृषि सेवा केंद्र तथा उद्योग निगमो की स्थापना एवं वित्तीय सहायता
तो नॉरमन बोरलॉग हरित क्रांति के प्रवर्तक माने जाते हैं लेकिन भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय सी सुब्रमण्यम को जाता है. एम ऐस स्वामीनाथन एक जाने माने वनस्पति विज्ञानी थे जिन्होंने हरित क्रान्ति लाने के लिए सी सुब्रमण्यम के साथ काम किया.
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