“केसर की खेती: सोने सी महंगी, मेहनत से संवरी”

भूमिका:
केसर (Saffron) दुनिया का सबसे महंगा मसाला है, जिसे “लाल सोना” भी कहा जाता है। यह खासतौर पर अपने रंग, सुगंध और औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। भारत में मुख्य रूप से केसर की खेती जम्मू-कश्मीर के पंपोर क्षेत्र में की जाती है। लेकिन अब आधुनिक तकनीकों के जरिए इसकी खेती अन्य ठंडी जगहों पर भी संभव हो गई है। इसकी खेती मुख्यतः कश्मीर के पुलवामा, किश्तवाड़ और बडगाम जिलों में की जाती है।केसर एक पौधा है जिसकी लंबी पतली डंडी के ऊपर बैंगनी रंग का फूल होता है। इस फूल के भीतर मौजूद लाल रंग की तीन पतली केसर कलियाँ (stigma) ही सुखाकर बाजार में बेची जाती हैं। यही असली केसर होती है, जिसे मसाले, दवाइयों और इत्रों में प्रयोग किया जाता है।

भारत विविधताओं का देश है, जहाँ हर प्रकार की जलवायु और भूमि पाई जाती है। इसी विशेषता के कारण यहाँ अनेक प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। इन्हीं में से एक है केसर (जाफरान), जिसे दुनिया का सबसे महंगा मसाला माना जाता है।केसर की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु (cool temperate climate) की आवश्यकता होती है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी (loamy soil) जिसमें जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खेत में पानी का ठहराव बिल्कुल नहीं होना चाहिए।

भूमि और जलवायु:

केसर की खेती के लिए विशेष प्रकार की भूमि और जलवायु की आवश्यकता होती है। यह फसल समशीतोष्ण जलवायु (ठंडी और शुष्क वातावरण) में अच्छी तरह उगती है। केसर को 15°C से 20°C तापमान की आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा और अधिक गर्मी इसकी फसल को नुकसान पहुँचा सकती है।

भूमि की बात करें तो केसर के लिए दोमट या बलुई-दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो। मिट्टी का pH मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा अधिक होनी चाहिए, जिससे केसर के कंद अच्छी तरह विकसित हो सकें। पानी का जमाव केसर की खेती में सबसे बड़ा दुश्मन है, इसलिए खेत की सतह समतल और पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए।

खेती की तैयारी:

केसर की अच्छी उपज के लिए खेत की सही तरीके से तैयारी बहुत जरूरी होती है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है ताकि मिट्टी नरम और भुरभुरी हो जाए। इसके बाद खेत को समतल किया जाता है और उसमें से पत्थर, जड़ें या कोई भी अवांछनीय वस्तु हटा दी जाती है।

मिट्टी में जैविक खाद, जैसे – सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाई जाती है ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े। इससे कंदों (Corms) की वृद्धि बेहतर होती है। खेत में पानी की निकासी के लिए छोटी-छोटी मेढ़ें बनाई जाती हैं ताकि बारिश या सिंचाई का पानी रुके नहीं।

बुवाई से पहले खेत को हल्की नमी दी जाती है ताकि बल्ब लगाने के समय मिट्टी में थोड़ी नमी बनी रहे। यदि खेत को पहले से तैयार करके उसमें कंद बोए जाएँ तो फसल स्वस्थ और अच्छी होती है।

इस तरह से सही तरीके से खेत की तैयारी करने से केसर की खेती में सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

बीज (बल्ब) की बुवाई:

केसर की खेती बीज से नहीं बल्कि इसके कंदों या बल्बों (Corms) से की जाती है। ये बल्ब खास किस्म के प्याज जैसे होते हैं, जिन्हें खेत में बोया जाता है। बुवाई का सही समय जुलाई से अगस्त तक होता है, जब मौसम ठंडा और थोड़ा नम हो।

बुवाई से पहले बल्बों को छांटकर अच्छे, सड़े-गले या रोगग्रस्त बल्बों को अलग कर देना चाहिए। स्वस्थ और मध्यम आकार के बल्ब ही खेत में लगाने चाहिए। बल्बों को 10 से 15 सेंटीमीटर की गहराई पर और 10 से 12 सेंटीमीटर की दूरी पर बोया जाता है।

बल्बों को बोने के बाद उन पर हल्की मिट्टी डालकर ढंक दिया जाता है। बुवाई के बाद खेत में हल्की सिंचाई की जाती है, ताकि बल्बों को नमी मिल सके और अंकुरण अच्छे से हो।

बल्ब जितने अच्छे और स्वस्थ होंगे, फसल भी उतनी ही अच्छी होगी। इसीलिए बल्बों का चुनाव और सही बुवाई की विधि केसर की खेती में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बुवाई का समय और तरीका:

केसर की बुवाई का सही समय जुलाई से सितंबर के बीच होता है। यह वह समय होता है जब मौसम में नमी होती है और तापमान धीरे-धीरे ठंडा होने लगता है, जो केसर के कंदों के अंकुरण के लिए उपयुक्त होता है। बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई की जाती है ताकि मिट्टी नरम, भुरभुरी और जलनिकासी योग्य हो जाए। खेत को खरपतवार और पत्थरों से साफ किया जाता है। इसके बाद खेत में क्यारियाँ या कतारें बनाई जाती हैं। केसर की खेती बीजों से नहीं, बल्कि कंदों (Corms) से की जाती है। इन कंदों को 10 से 15 सेंटीमीटर गहराई में और 10-12 सेंटीमीटर की दूरी पर मिट्टी में बोया जाता है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई की जाती है, लेकिन खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे कंद सड़ सकते हैं। अच्छी बुवाई के लिए कंद का चयन, खेत की तैयारी और मौसम का सही अनुमान होना बहुत जरूरी होता है।

सिंचाई और देखभाल:

केसर की खेती में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि यह फसल अधिक पानी सहन नहीं कर सकती। इसके कंद नमी में जल्दी सड़ सकते हैं, इसलिए खेत में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। सामान्यतः इसकी खेती में बहुत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। वर्षा ऋतु के बाद यदि मिट्टी अधिक सूखी हो, तभी हल्की सिंचाई की जाती है। फूल निकलने के समय यानी अक्टूबर-नवंबर में जरूरत के अनुसार एक-दो बार पानी देना फायदेमंद होता है। देखभाल के अंतर्गत खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है, क्योंकि यह पौधों से पोषण छीन लेते हैं और फसल को नुकसान पहुँचाते हैं। समय-समय पर खेत में निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके अलावा कीट और रोगों से बचाने के लिए जैविक या आवश्यकतानुसार रासायनिक उपाय किए जा सकते हैं। यदि सही तरीके से देखभाल की जाए, तो केसर की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होती है।

फूल और तुड़ाई:

केसर की फसल में बुवाई के लगभग दो से तीन महीने बाद फूल आने लगते हैं। अक्टूबर से नवंबर के बीच पौधों में सुंदर बैंगनी रंग के फूल खिलते हैं, जिनकी खुशबू और रंग बहुत मनमोहक होते हैं। हर फूल के अंदर तीन लाल रंग के धागे होते हैं, जिन्हें ‘स्टिग्मा’ (stigma) कहा जाता है — यही असली केसर होता है। फूलों की तुड़ाई बहुत नरमी और सावधानी से की जाती है, क्योंकि फूल बेहद नाज़ुक होते हैं। तुड़ाई का कार्य आमतौर पर सुबह के समय किया जाता है, जब फूल पूरी तरह खिले होते हैं। फूलों को तोड़ने के बाद उनमें से केसर के धागों को हाथ से अलग किया जाता है और फिर उन्हें छांव में सुखाया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत ही बारीकी और धैर्य से की जाती है, क्योंकि यही केसर की गुणवत्ता और कीमत तय करती है। एक हेक्टेयर खेत से केवल कुछ किलो शुद्ध केसर ही निकलता है, लेकिन उसकी कीमत लाखों में होती है।

लाभ और बाज़ार:

केसर एक बहुत ही महंगी और लाभदायक फसल है। इसे सही तरीके से उगाने पर किसान को बहुत अच्छा मुनाफा मिल सकता है। एक किलो शुद्ध केसर की कीमत बाजार में ₹2 लाख से ₹3 लाख तक हो सकती है, और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तो इसकी कीमत और भी ज्यादा होती है। इसका उपयोग मिठाइयों, दूध, दवाइयों, सौंदर्य प्रसाधनों (कॉस्मेटिक्स) और पूजा-पाठ में बड़े पैमाने पर होता है। इसकी मांग पूरे भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बहुत अधिक है। खासकर खाड़ी देशों, अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों में केसर की भारी डिमांड है। यदि किसान वैज्ञानिक तरीके से केसर की खेती करें और फसल की गुणवत्ता बनाए रखें, तो उन्हें थोक व्यापारियों या निर्यातकों से अच्छे दाम मिल सकते हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा केसर उत्पादकों को प्रशिक्षण, सब्सिडी और विपणन (Marketing) में मदद भी दी जाती है। इस प्रकार, केसर की खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत लाभकारी हो सकती है।

निष्कर्ष

केसर की खेती एक विशेष ज्ञान, मेहनत और धैर्य की मांग करती है। यह आम खेती की तरह नहीं होती, लेकिन यदि इसे सही तरीके से किया जाए तो यह किसानों के जीवन को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है। बदलते समय में जब पारंपरिक फसलें अपेक्षाकृत कम मुनाफा दे रही हैं, तब केसर जैसी नकदी फसलें किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकती हैं। इसीलिए कहा जाता है — “केसर की खेती: सोने सी महंगी, मेहनत से संवरी।”


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